हे मर्यादापुरुषोत्तम राम, कहाँ हो?
हे गिरिधर घनश्याम, कहाँ हो?
कि धरा पर पाप बढ़ेगा जब-जब
पापियों का संहार करने आऊँगा तब-तब,
ऐसा कहने वाले श्याम, कहाँ हो?
हे मेरे प्रभु श्रीराम, कहाँ हो?
कि समा गयी है धरती, तमस की आगोश में,
डूब गयी है रूह, संताप और गहरे रोष में।
रोशनी दिखाने वाले, हे भगवान कहाँ हो?
हे जग के संरक्षक श्रीराम, कहाँ हो?
भटक गये कई अर्जुन स्वपथ, सात्विकि के इंतज़ार में,
कर रहे शांतिदूत की प्रतीक्षा, इस नैतिकता के सन्हार में,
कि द्रौपदी के आबरु-रक्षक गोपाल कहाँ हो?
धरती कर रही इंतज़ार,कहाँ हो?
-- सिद्धार्थ
हे गिरिधर घनश्याम, कहाँ हो?
कि धरा पर पाप बढ़ेगा जब-जब
पापियों का संहार करने आऊँगा तब-तब,
ऐसा कहने वाले श्याम, कहाँ हो?
हे मेरे प्रभु श्रीराम, कहाँ हो?
कि समा गयी है धरती, तमस की आगोश में,
डूब गयी है रूह, संताप और गहरे रोष में।
रोशनी दिखाने वाले, हे भगवान कहाँ हो?
हे जग के संरक्षक श्रीराम, कहाँ हो?
भटक गये कई अर्जुन स्वपथ, सात्विकि के इंतज़ार में,
कर रहे शांतिदूत की प्रतीक्षा, इस नैतिकता के सन्हार में,
कि द्रौपदी के आबरु-रक्षक गोपाल कहाँ हो?
धरती कर रही इंतज़ार,कहाँ हो?
-- सिद्धार्थ
1 comment:
subhan allah, lagta hai aapne hamare "netaon" ki dhandli se trast ho ke likhi hai. Badiya hai.
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