Wednesday, September 14, 2011

परिवर्तन

उस रास्ते की तारीफ करने को शब्द नही मिल रहे| यह रास्ता इतनी सोच-समझ कर बनाया गया है कि ऐसा लगता है मानो इसे बनाने वाला प्राणी सिर्फ सोचता और समझता ही रह गया हो, बनाने का कार्य उसने परमपिता परमेश्वर पर छोड दिया हो| इंसान ने आज तक जितने भी अभियांत्रिकी के गुर ईज़ाद किये हैं, इस सडक को बनाने में उन सभी का इस्तेमाल किया गया है| सडक के किस हिस्से में कितना बडा गढ्ढा होना चाहिये तथा किस शुभ मुहूर्त में उस गड्ढे को कितनी ऊँचाई तक तथा किस किस्म के पत्थर से भरना है, यह भी एक पूर्व निर्धारित योजना के तहत तय किया गया है| इसपर चलता हुआ चार-पहिया वाहन इस प्रकार हिचकोले ख़ाता है मानो संसद में पेश किया जाने वाला लोकपाल बिल हो| और जब कोई दो-पहिया वाहन चालक अपनी जान की बाजी लगाते हुए इस सड़क को पार करने की कोशिश करता है, तब ही उसे अहसास हो पाता है की रिश्वत दे कर लाइसेन्स बनवाने में क्या नुकसान है|
कौन कहता है की सच्ची खुशी सिर्फ़ बच्चो को नसीब होती है| एक बार इस सड़क को सही सलामत पार करने में जिस आनंद का अनुभव होता है, उसकी शब्दो में अभिव्यक्ति लगभग असंभव ही है| ऐसा महसूस होता है मानो द्वितिय विश्व युद्ध की जीत का संपूर्ण श्रेय प्रदान कर दिया गया हो| यदि वाहन भारतीय शैली में निर्मित हो तो बिना उत्सव अथवा मेले के झूले का मज़ा देता है| सोने पे सुहागा, यदि कोई सरकारी ट्रक इस सड़क पे चलता हुआ नज़र आए तो ये कह पाना मुश्किल हो जाता है कि वो ट्रक इस सड़क का बलात्कार कर रहा है या फिर ये सड़क उस ट्रक का|
इस सड़क पे तरह तरह की घटनायें भी होती हैं जिनमे सबसे आम है दुर्घटना| यदि कोई मोटरसाइकल सवार खुद को मौत के कुएँ से बचाते हुए गिर जाए तो तुरंत ५०-६० लोग उसको घेर लेंगे जैसे की सड़क पर किसी महिला का प्रसव हो रहा हो| फिर जीतने मुँह उतनी बातें|
"काफ़ी खून निकल आया है|"
"हाँ देखो, खून से मोटरसाइकल कैसे लाल सुर्ख हो गयी है|"
"वो खून नही है, मोटरसाइकल का रंग है|"
"आपको ज़्यादा पता है क्या?"
फिर देखते हे देखते दुर्घटनास्थल युद्धस्थल में परिवर्तित हो जाता है| और जो बेचारा सवार गिरा था, तब तक होश में आ जाता है और इस महासंग्राम को देख कर घबराते हुए चुपचाप वहाँ से निकल जाता है|
कल फिर कोई गिरेगा, कल फिर वो अपने धर्म, जाती इत्यादि गौण चीज़ों को भुला कर एक होंगे| पर गीता-सार की आख़िरी पंक्ति "परिवर्तन ही संसार का नियम है" को अमान्य करार देती हुई ये सड़क कभी नही बदलेगी|

-- This is a true description of the road from my hostel to plant. You have to ride on it to get the clear picture. :)

Saturday, September 3, 2011

अचेत

गिरा करता है शोर क्षिपणी सा
आज भी इन कानो के पर्दों पर |
 होता है प्रहार आज भी
तन्हा, पृथक  से इस दिल पर | 
    हैं सोने को बेचैन ये आँखें
    पर जैसे चुरा ली गयी हो नींद |
    उठ नही पा रहे हैं ये पग
    सारी दुनिया है जिन कदमों पर |
भूल गया है मकसद अपना
पर दुनिया से अन्जान नही
है अचेत सा, अनभिज्ञ सा
पर खोया आत्मसम्मान नही |
   राह कठिन है, किंतु हठ कर
   तू आगाज़ से अंजाम तक चल |
   मंजिल तो मिलेगी ही कभी ना कभी
   बस मंजिल की पहचान तू  कर |

-- सिद्धार्थ